हिंदी व्याकरण - वाक्य के भेद

 वाक्य के भेद 

  • रचना के आधार पर इसमें एक वाक्य दिया जाएगा। उस वाक्य का रचना के आधार पर भेद पहचानकर लिखना होगा। 
  • अर्थ के आधार पर इसमें दो वाक्य दिए जाएँगे। इनमें से किसी एक वाक्य को अर्थ के आधार पर दी गई सूचना के अनुसार परिवर्तित करके लिखना होगा।

नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए

(1) भारत एक महान देश है।

(2) समय बहुत बलवान है।

(3) सदा सत्य बोलो।

शब्दों के ऐसे सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं, जिससे किसी विचार की पूर्णता प्रकट हो।

जैसे - विद्यार्थी पाठशाला में पढ़ते हैं।

वाक्य के भेद

वाक्य के दो भेद होते हैं :

(1) अर्थ के आधार पर
(2) रचना के आधार पर

(1) अर्थ के आधार पर वाक्य के आठ भेद होते हैं :

(1) विधानार्थक वाक्य :

जिस वाक्य में किसी क्रिया के होने या करने की सूचना हो, उसे विधानार्थक / विधानवाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(1) लिखने के पहले मैंने पढ़ना शुरू किया था।
(2) दो मिनट में गाड़ी आकर दरवाजे पर लग गई ।
(3) यहाँ सरदी अच्छी है। 

(2) निषेधार्थक वाक्य : 

 जिस वाक्य में किसी बात के न होने या न करने का बोध होता हो, उसे निषेधार्थक/ निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। 
जैसे- 
(1) पहले हमें उदर की चिंता नहीं थी।
(2) फूल अपना प्रतिबंध नहीं बेचेगा।
(3) नागर जी के पिता जी सरकारी कर्मचारी नहीं थे।

(3) प्रश्नार्थक वाक्य: 

जिस वाक्य में किसी प्रकार का प्रश्न किया गया हो, उसे प्रश्नार्थक / प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। 
जैसे - 
(1) आप किसको अपना आदर्श मानते हैं?
(2) क्या ठंड भरे मौसम में आकाश के तारे पले दिखाई देते हैं?
(3) क्या बाबूजी आ गए?

(4) आज्ञार्थक वाक्य : 
जिस वाक्य में किसी भी प्रकार की आज्ञा या प्रार्थना का बोध होता हो, आज्ञार्थक / आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(1) दीन-दरिद्रों को रहने के लिए घर का इंतजाम करो। 
(2) मुझे हर सप्ताह एक पत्र मिलना ही चहिए
(3) अब राजप्रथा मिटा दो।

(5) इच्छार्थक वाक्य : 

जिस वाक्य में इच्छा, कामना, आशीर्वाद आदि का बोध होता है, उसे इच्छार्थक / इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
 जैसे- 
(1) ऐसा काम करो कि देखने वाले देखते ही रह जाएँ।।
(2) मानू दीदी, आप सदा सुखी रहें।।
(3) प्रभु आपकी कामना पूरी करे।

(6) संदेहार्थक वाक्य : 

जिस वाक्य में संदेह या शंका का बोध होता है, उसे संदेहार्थक / संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
जैसे-

(1) अर्थ तो शायद मेरी कविताओं में आपको मिल जाए।
(2) शायद गरीब भूख की लाचारी से श्रम करता है ।
(3) मानू के ससुरालवाले चिक व शीतलपाटी की प्रतीक्षा कर रहे होंगे।

 (7) संकेतार्थक वाक्य : 

जिस वाक्य में संकेत या अपेक्षा का बोध होता है, संकेतार्थक / संकेतवाचक वाक्य
वाक्य कहते हैं। 
जैसे-
(1) अगर गाय दूध नहीं देगी तो इसका क्या करेंगे? 
(2) चुपचाप पड़ा रहूँगा तो कोई मिलने वाला तंग नहीं करेगा।
(3) अगर अच्छा काम करोगे तो मोहर छापवाली धोती दूंगी।

(8) विस्मयार्थक वाक्य :
 जिस वाक्य में हर्ष, शोक, विस्मय, घृणा आदि का बोध होता है, उसे विस्मयार्थक/ विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(1) अच्छा! फूल अपनी गंध नहीं बेचेगा।
(2) अहा! हमने बहाना सोच लिया ।
(3) वाह! कैसी सुगंध है।

(2) रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं :


(1) सरल वाक्य :

 जिस वाक्य में एक ही मुख्य क्रिया हो, उसे सरल वाक्य कहते हैं। 

(1) रात के समय लोग अपने-अपने घरों में सो जाते हैं।
(2) उनका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया।
(3) सामाजिक समता का प्रश्न अहिंसा के मार्ग से सुलझेगा। 

(2) संयुक्त वाक्य : 

संयुक्त वाक्य में दो या दो से अधिक सरल वाक्य समुच्चयबोधकों (और, परंतु, तथा, या आदि) से जुड़े रहते हैं।

(1) हेमंत ऋतु बीत गई तथा शिशिर ऋतु आ गई।
(2) बाबूजी खुद इंपाला का प्रयोग न के बराबर करते थे और वह किसी स्टेट गेस्ट के आने पर ही निकाली जाती थी।
(3) जाँच अधिकारियों ने कनस्तरों को ढूंढा, मटकों को ढूंढा, परंतु कहीं कुछ नहीं मिला। 

(3) मिश्र वाक्य : 

जिस वाक्य में एक प्रधान और शेष आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं।
जैसे -
(1) मैं वह सौगंध नहीं बेचूँगा, जो मेरा संस्कार बन गई।
(2) अंतरी को जैसा कहा गया था, उसने वैसा ही किया।
(3) उन्होंने रसोईयर की पीपियाँ टटोलों, जो खाली थीं।

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